“पत्रकार या पार्टी के जयकारे? चलिए, प्रकोष्ठ में समायोजन कर देते हैं!”

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

आजकल कुछ पत्रकारों की सोशल मीडिया प्रोफाइल पर राजनैतिक दलों के जयकारे और चरण चाटने वाले स्टेटस की भरमार देखने को मिल रही है। ये वही लोग हैं जो खुद को “खांटी पत्रकार” कहते हैं, लेकिन उनके व्यवहार से तो ऐसा लगता है कि वे किसी पार्टी के PR एजेंट ज्यादा हैं।

सोशल मीडिया पर जयकारा या पत्रकारिता?

राजनीतिक दलों के लिए खुलकर समर्थन करना आज के पत्रकारिता जगत का नया ट्रेंड बन गया है। ट्विटर हो या फेसबुक, इन पत्रकारों के स्टेटस देखकर लगेगा जैसे कोई पार्टी मीटिंग चल रही हो। उनके पोस्ट्स में नेताओं के गुणगान, भाषणों के रीट्वीट, और जयकारों की ऐसी बौछार होती है कि सवाल उठता है—ये पत्रकार हैं या पार्टी के प्रचारक?

पत्रकारों के लिए राजनीतिक प्रकोष्ठ: समाधान या समस्या?

एक नया आईडिया देना चाहिए—“पत्रकार प्रकोष्ठ” बनाएं। इस प्रकोष्ठ में इन “प्रफेशनल जयकारों” को पद देकर समायोजित किया जाए। इससे दो काम हो जाएंगे: पत्रकारों को ‘सम्मान’ मिलेगा और पार्टियों को उनके फ्री प्रचार से छुटकारा।

पत्रकारिता की मर्यादा और मीडिया की सच्चाई

पत्रकारिता का मतलब है खबरों को निष्पक्षता से पेश करना, ना कि किसी पार्टी के लिए मुफ्त में PR करना। जब पत्रकार खुद ही राजनीतिक दलों के बन जाएं, तो मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। इसलिए जरूरी है कि पत्रकार अपने पेशे की मर्यादा को समझें और जनता के लिए काम करें, न कि पार्टी के लिए।

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